बचपन के वे दिन!

बचपन के वे दिन! - Mr Shayar Online
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वे दिन कुछ खास और अच्छे थे,
जब हम छोटे बच्चे थे

ना किताबें थीं, ना पढ़ाई थी,
सिर्फ़ खेल कूद और लड़ाई थी।

आज हम जो बड़े हो गए हैं,
लगता है जैसे कहीं खो गए हैं

परेशानियों के बोझ के नीचे दब गए हैं,
सभी मित्र, सभी प्रियजन छूट गए हैं

बचपन में हर एक पल कुछ खास थे,
जब हम अपने मित्रों, अपने प्रियजनों के पास थे

बचपन में ना थी कोई चिंता, ना था कोई रोना,
ना ही कुछ इच्छा थी, ना था कुछ खोना

ना कुछ पाने की चाह थी, ना थी कोई आशा,
ना था कोई दुख, और ना ही निराशा

तब सिर्फ़ मित्रों के साथ हंसी में ही लड़ाई करते थे,
सभी मित्र निस्वार्थ भाव से एक दूसरे की बड़ाई करते थे

हर एक छन, हर एक घड़ी, खेल कूद में काटते थे,
सिर्फ़ अपने मित्रों से ही सुख दुख बांटते थे

आज सब मित्र बिल्कुल स्वार्थी हो गए हैं,
गरीब मित्रों के दुश्मन और अमीरों के शरणार्थी हो गए हैं

बचपन में हम ना तो इतने स्वार्थी थे,
ना किसी के दुश्मन और ना ही शरणार्थी थे

आज लगता है कि बचपन के वे दिन थे बहुत ही अच्छे,
जब हम ना तो स्वार्थी थे, ना थे बुरे, थे तो सिर्फ़ सच्चे

आज हमें जब भी दुखों और मुसीबतों के पल सताते हैं,
हमें झट से बचपन के वे दिन याद आ जाते हैं

काश हम बड़े ना होते, बने रहते सिर्फ़ बच्चे
ना कोई चिंता होती, ना कोई दुःख होता
और हैं हरपाल रहते सच्चे और अच्छे।

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