रिमझिम बरस जा।

आफ़रीन सा एक वो ख़्वाब मेरा,
जो तुझको मुझसे मिला गया,
दर्द तो कम हुआ मुझको जब,
एक प्यार का साया सा सहला गया।


मेरी आगोश में जो आ जाए तू,
तुझमें ही समा कर बस जाऊं मैं,
ना कोई हो अपने दर्मियां फिर,
तेरा ही होकर रह जाऊं मैं।


आंखों में उसकी अलग ही नशा था,
यूं पड़ते नज़र उसकी घायल हुआ,
बातों का तो था मैं पहले से दीवाना,
अदाओं का भी उसकी कायल हुआ।


आंसुओं की कीमत वो क्या जाने,
देखा ना जिसने गम कोई,
गम क्या होता पूछो उनसे,
जिनका ना हमदम कोई।


वो तन्हाई वही जो कोई हमदम ना हो,
वो जुदाई नहीं गर आंखें नम ना हो,
वो ज़िंदगी ही क्या जिसमें गम ना हो,
वो आशिक़ी ही क्या जिसमें हम ना हों।


पास रहना गंवारा नहीं,
तो ये दूरी ही सही,
जो ना हो पाए पूरी मोहब्बत,
तो मोहब्बत ये अधूरी ही सही।


तू शरमाकर जो मुस्कुरा दे तो,
एक अफसाना बन जाएगा,
ये तारे तो क्या ये चांद भी,
तेरा दीवाना बन जाएगा।


अफ़सोस नहीं तेरे जाने का मुझको,
गम है तो बस तेरे बहाने का मुझको।


लिखता नहीं मैं सोचकर कुछ भी
अल्फ़ाज़ मेरे हैं आवाज़ तेरी
नहीं चाहता सिर्फ़ तुझे मैं
पसंद है मुझे हर साज़ तेरी।


ये बारिश आती तो है, मस्ती, ख़ुशी, फुहार लेकर,
पर चली जाती है उसकी यादें हरबार देकर।


वे दिन कुछ खास, कुछ अच्छे थे,
जब हम छोटे बच्चे थे।


कि आए जो तू तो बहार आ जाए,
गमगीन चेहरों पर निखार आ जाए।


दिल ही नहीं मुझको भी जीत लिया
बेबाक सा जो जवाब दिया उसने
आसमान से भी ज़्यादा ख़ुदको
मेरी नज़रों में उठा दिया उसने।


बेबस नहीं था इश्क़ में मैं भी
क़दर थी तो बस मोहब्बत की मुझको
दिल में समांकर उसीको उजाड़ा
शरम ना आयी ज़रा सी भी तुझको।


कि जलने लगे खुद अब हमसे मोहब्बत
प्यार इस कदर निभाया है तुमने
भूल गया था खुदको इस बेखुदी में
मुझको मुझीसे मिलाया है तुमने।


नाम अपना बनाने के लिए
ज़माने भर में हमें बदनाम करते हैं,
वफा की उम्मीद ना रखना तुम उनसे
वो तो बेवफ़ाई भी सरेआम करते हैं।


भरोसे की डोर कितनी ही मज़बूत क्यूं ना हो,
शब्दों के तीर से बच नहीं पाते हैं
ना हो जिनमे प्रेम और आदर
रिश्ते वे आख़िरकार बिखर ही जाते हैं।


ये चांद भी शरमा गया जब,
नाम तुम्हारा बताया उसे,
गुरूर बहुत था उसको भी तबतक
था तुमसे ना जबतक मिलाया उसे।


चाहत को काफ़ी तेरी याद मुझको,
फिर चाहे मिले ना तू मुझको ना ग़म है,
मोहब्बत में हाज़िर हो जान-ए-वफा जो,
आशिक़ी के लिए फिर तो आशिक़ भी कम है।


तेरे हुस्न-ए-दीदार को हम हैं तरसे,
कातिल सा मुखड़ा दिखाया करो,
ज़ालिम ये दूरी सताती बहुत है,
कभी तो मेरे पास आया करो।


खोया ही रहता हूं यादों में तेरी,
ख़ुशबू बसी है मेरी सासों में तेरी,
पहले तो ना था मैं इतना दीवाना,
कुछ तो जादू होगा बातों में तेरी।


धूप सुनहरी जो चमकी धरा पर
पेड़ पौधे सभी खिलखिलाने लगे
चेहरा हंसी से झूम उठा सबका
ये पंछी जो सरगम सुनाने लगे।


ओस की बूंदें बनकर
मैं तेरी आंखों से बहता हूं
मुझे याद क्यूं करती है पगली
मैं तेरे दिल में ही तो रहता हूं।


एहमियत नहीं उसकी आंखों में मेरी
बस उसे एक दौलत का नशा था
जब चाहे ठुकराया चाहे तो अपनाया
मोल नहीं कोई मेरी वफा का।


हसीं ख़्वाब जैसा
खुशनुमा एहसास हूं मैं
कहां ढूंढती हो मुझे
हर पल तुम्हारे पास हूं मैं।


बड़ा अजब सा फ़लसफ़ा है ज़िन्दगी का,
ना समझ में आता है, ना समझ से जाता है।


इश्क़ अपना कुछ यूं फना हो जाए,
रहें तो सिर्फ़ तू और मैं, बाकी सब धुआं हो जाए।


फितूर तेरा चढ़ जाएगा मुझपर
जब याद तुम्हारी सताएगी
चली आना तुम हवा बनकर
गर तुम जो मिलना चाहोगी।


वफ़ा-ए-मोहब्बत तो हमने भी की है,
कुछ फ़साना तुम्हारा तो कुछ है हमारा।
ना समझ ए दिल अब गैर उसको,
उसी ने बिखेरा उसी ने संवारा।


ये गलतफहमी भी बड़ी सही होती है,
किसको, किसपर, कितना भरोसा है, सब जता देती है।


ना मिले मोहब्ब्त ऐसा भी क्या गुनाह किया,
दिल में रहकर उसीको तूने तबाह किया।


बड़ा गुस्सा आता है इस चांद पर भी मुझे,
जब भी खोता हूं उसकी आखों में, ढल जाता है।


गुज़ारिश है तुमसे मेरी
जाते जाते मेरा ये पैग़ाम रखना
भूल जाना मुझको, चाहे तो दिल से मिटा देना
मोहब्बत ना सही, तो नफ़रत मेरे नाम रखना।


हक़ीक़त में जब दीदार होगा उनसे
जाने क्या खयाल होगा हमारा
यकीन नहीं होगा किस्मत पर अपनी
शायद कुछ ऐसा हाल होगा हमारा।


सपनों में जो आती हो तुम,
कभी हक़ीक़त में भी तुम आया करो,
पायल तो छनकाती हो तुम,
कभी प्यार भी तो छलकाया करो।


ख़ुशी ना सही तो गम ही मुबारक हमको,
जितनी मिली, काफी है जीने को।


तेरे हुस्न-ए-दीदार को हम हैं तरसे,
हूं मैं बस तेरा और तू मेरी मंज़िल,
चाहत में तेरी हूं मैं तो दीवाना,
ये जाने है तू और बस एक मेरा दिल।


इलज़ाम लगता रहा हमपर कि हम बेवफा हैं,
ज़रा कोई ये भी तो पूछे कि किससे सीखी है हमने।


अपनी भी ईमानदारी के किस्से मशहूर हैं कईं,
एक बार किसी से दिल लगा लिया, तो दिल से कभी उतरते नहीं।


ज़रा उनपर भी तो हो मोहब्बत की इनायत,
जो मोहब्बत को बदनाम सरेआम करते हैं,
बातें करते हैं दिल से दिल लगाने की,
और दिल्लगी सुबह शाम करते हैं।


इनकार नहीं करता अब तो तन्हाई को भी मैं,
जब कोई साथ ना हो तो साथ यही निभाती है।


मोहब्बत ना तुमको दिखाता हूं मैं,
चाहत तुमसे अपनी छुपाता हूं मैं,
सरेआम इज़हार करने वाले तो
लाखों मिल जाएंगे तुम्हें,
दिल में रखकर प्यार निभाता हूं मैं।


जंग सी हो गई है अब तो ज़िन्दगी,
लड़ें तो क्रूर और ना लड़ें तो कायर कहलाते हैं।


बाहों में जो आई वो तो यूं लगा जैसे कि,
जन्नत समा गई है बाहों में मेरी।


जज़्बा, मेहनत और हिम्मत कभी ना हारना,
जब कोई ना होगा, तो ये ही होंगे साथ तुम्हारे।


मिल ना सके वे फिर कभी,
उस शाम की मुलाकात के बाद,
रख लिए छुपाकर मन में अपने,
दोनों ने अपने दिल के जज़्बात।


जुदाई एक पल की भी तुमसे,
सहन नहीं होती है मुझको।
हर सूरत में ढूंढता हूं चेहरा तेरा,
ये बात कैसे बताऊं मैं तुझको।


दिन रात उसी की बातें करूं मैं,
कशिश सी उसी की छायी हुई है,
भले ही मिटा दूं मैं यादों से उसको,
पर सांसों में भी वो समायी हुई है।


ख़ामोशी अच्छी नहीं लगती उनपर,
जो शब्दों के कलाकर होते हैं।


तुम्हें देखता रहूं मैं बस यूं ही,
जाने क्यूं तुम्हारी बातें सच्ची लगती हैं।
एक बस खयाल तुम्हारा,
यादें बाकी सारी कच्ची लगती हैं।
तुम्हारी बातें अच्छी लगती हैं।


कभी जो ख्वाबों में आना हो तो
बता देना पहले ही मुझे
नींद कहीं से चुराकर
जल्दी सो जाया करूंगा मैं।


जो हर लम्हा तू मेरे साथ ही रही,
संग मेरे तो थी ही, मेरे जाने के बाद भी रही।


सच्ची मोहब्बत हो जिनके दरमियान,
दूर होकर भी वे पास होते हैं।
ज़िन्दगी से बढ़कर होती है चाहत,
कुछ रिश्ते इतने खास होते हैं।


जो हमें गलती के लायक नहीं समझते,
उनसे माफ़ी की क्या उम्मीद रखना।


चाहत है उसके लिए हद से भी ज़्यादा,
जिसने मुझे इस काबिल बनाया।
भटका हुआ राहगीर था मैं,
मंज़िल से मेरी मुझको मिलाया।


मासूम सी थी वो थी सबसे निराली,
मैं तो बस उसे निहारता रहा,
शरम से झुकी उसकी पलकें चमकीली,
प्यार उसका मेरे दिल में उतरता रहा।


ये गर्मी के दिन और ये ठंडी सी रातें
मौसम की बदली सताती बहुत है,
ना गर्मी ये भाए ना सर्दी लुभाए,
क्या करूं मैं तेरी याद आती बहुत है।


दिल से तो बहुत पहले ही हटा दिया तूने,
अब एक मेहरबानी और कर देना,
ज़रा अपनी रूह से भी दफ़ा कर दे मुझे।


उठो चलो बढ़ो ज़रा,
कभी कहीं ना रुकना तुम,
कठिन हो कितनी राह भी,
किसी तरह ना झुकना तुम।


मुकम्मल मेरा प्यार उसके लिए
न जाने कब उसको ये एहसास होगा
न होगी कोई रंजिशें दरमियान में
वो कातिल सा मुखड़ा मेरे पास होगा।


मिल ना सके वे फिर कभी,
उस शाम की उस मुलाक़ात के बाद,
आंखें भी तो दोनों की नम थीं,
छुपा लिए अपने दिल में जज्बात।


नफ़रत हो जिससे ख़ुद से भी ज़्यादा
बिनचाहे उससे मिलाती है ज़िंदगी
इश्क़ में जो पड़ जाए गलती से कोई
हद से भी ज़्यादा आजमाती है ज़िंदगी।


उसकी नाराज़गी में भी अलग ही मज़ा है,
दिल ना तो उसे हंसाना चाहता है और ना ही मनाना।


दूर ना होंगे नज़र से तुम्हारी,
एक तुम ही तो हो हर खुशी अब हमारी।


जाने की राबता ही उससे मेरा,
बिन सोचे ही उससे मिल जाता हूं मैं,
गम चाहे कोई हो मुझको कभी भी,
याद आते ही उसकी खिल जाता हूं मैं।


दिल की तन्हाई को मेरी समझ ना पाई वो,
चैन मेरा लेकर कुछ यूं मुस्कुराई वो,
कोशिश तो जी जान लगाकर की मैंने,
पर होकर भी मेरी हो ना पाई वो।


तकदीर में मैं ही हूं शायद तुम्हारे,
भला इतनी नजरंदाज़ी के बाद भी मिलता रहता है कोई?


तारीफ के काबिल तो नफ़रत थी उसकी,
ना कभी कम ना कभी ज़्यादा,
हर पल जी भरकर की उसने।


अच्छे वक़्त पर गुरूर ना करना ए दोस्त मेरे,
कभी किसी का होकर ना रहा, तो फिर तुम्हारा क्या होगा।


शाम होते ही उसे याद आती थी मेरी,
दिन भर में बहलाने वाले बहुत थे उसके।


ज़िद नहीं मेरी चाहत है तू,
हद से बढ़कर मेरी ज़रूरत है तू।


अगर ना मिलती हमसे तुम,
तो कैसे रूत ये होती जवां,
किसी मकसद से ही मिले होंगे हम,
ज़िंदगी में कुछ भी नहीं होता बेवजह।


ज़रूरत नहीं है बुलाने की मुझको,
कहीं भी तो नहीं गया मैं,
आंखे बंद करके याद कर लेना बस,
मिलूंगा अपने साथ तुम्हें।


मोहब्बत में जायज़ है सर को झुकाना,
तुम आंखें मिलाने को शरमाते क्यूं हो,
चलो ये तो कुछ भी नहीं है मगर फ़िर,
जुल्फ़ें घनी तुम ये लहराते क्यूं हो।


खुश्क गर्मी आती है बरसातों के पहले,
भला पंछी चहचहाना छोड़ देते हैं क्या?
नहीं मिलता जब भंवरों को आशियाना,
फूल ढूंढने से मुंह मोड़ लेते हैं क्या?
यकीन करो ख़ुद पर सबसे ज़्यादा,
याद आएंगे तुम्हें ये मुश्किलों भरे दिन।


ये इश्क़ का ही फितूर है,
दिल्लगी करना तो एक कसूर है,
दूरी में भी पास आता ज़रूर है,
पर दिल को प्यार ये नामंजूर है।


ज़माने भर की फ़िक्र ना करके
सरेआम इकरार करते हैं,
जो प्रियतम को अपने
ख़ुद से ज़्यादा प्यार करते हैं।


होती ही नहीं हद मोहब्बत की कोई,
बरसात-ए-चाहत में निखर लूं ज़रा।
बिखर सा रहा हूं न जाने मैं कब से,
एक नाम से तेरे अब संवर लूं ज़रा।


तुम्हें देखता रहूं मैं बस यूं ही,
जाने क्यूं तुम्हारी बातें सच्ची लगती हैं।
एक बस खयाल तुम्हारा,
यादें बाकी सारी कच्ची लगती हैं।
तुम्हारी बातें अच्छी लगती हैं।


इतना हसीन एहसास ना पाते,
जो हम यूं इतने पास ना आते।


संगम हो ना हो आशिक़ी में,
दिल में चाहत होनी ज़रूरी है,
जिसमें इश्क़ ज़ाहिर करना पड़े,
मोहब्बत तो वो अधूरी है।


नहीं भूला मैं वो हसीं यादें,
बचपन रखता हूं अपने दिल में,
अब क्या करूं मैं...
मन नहीं लगता मेरा इस महफ़िल में।


मोहब्बत का पैमाना कौन ही समझ पाया है,
यहां खुद को दांव पार लगाने की जुर्रत किसमें हैं।


एक मैं ही तो हूं...
बातों, जज़्बातों, दिन रातों में,
तुम्हारे हर एक पल में।


बाहें जो खोल दूं मैं कभी तो
मुझमें समां जाना तू,
दिल से जो पुकारूं तुझको 
पास मेरे आ जाना तू।


कितने हसीन
जब सब यार दोस्त मिलकर
कहीं भी घूम आते थे।
ना तय होता था कहां जाना है
और ना ही खबर थी जहां जाते थे।


याद करते हैं जिनको हद से ज़्यादा,
वो हमारी कीमत कम आंकते हैं,
यूं तो बस कहने को दूरी दिखाते हैं,
निजी ज़िंदगी में ज़्यादा झांकते हैं।


मुकम्मिल मेरा प्यार उसके लिए
न जाने कब उसको ये एहसास होगा
न होगी कोई रंजिशें दरमियान में
वो कातिल सा मुखड़ा मेरे पास होगा।


तेरे हुस्न-ए-दीदार को हम हैं तरसे,
हूं मैं बस तेरा और तू मेरी मंज़िल,
चाहत में तेरी हूं मैं तो दीवाना,
ये जाने है तू और बस एक मेरा दिल।


दिल से तेरी यादें मैं मिटा नहीं सकता, 
चाहता हूँ तुझे कितना मैं ये बता नहीं सकता, 
ख्वाहिश तो है मेरी कि जान ले तू भी ये बात, 
पर दिल में मेरे क्या है मैं दिखा नहीं सकता।


उनसे मिलने की उम्मीद में हम घर से चलते हैं,
जिनकी मंजिलें एक होती हैं वो अक्सर सफर में ही मिलते हैं ।


थामा जो हाथ तेरा मैंने, तो छोड़े भी ना छूटेगा
रिश्ता जुड़ जाएगा दामन से तेरे, फ़िर तोड़ने से भी ये दिल ना टूटेगा।


फितूर चढ़ जाए तेरा ही मुझपर
जब याद तुम्हारी सताएगी
चली आना तुम हवा बनकर
गर तुम जो मिलना चाहोगी।


बसे हो जिसके हर कतरे में तुम,
उसे वफ़ा-ए-इश्क़ याद दिलाया नहीं जाता।
मोहब्बत हो जिससे बेइंतेहा,
उसे कभी भुलाया नहीं जाता।


दिल की तन्हाई को मेरी समझ ना पाई वो, 
चैन मेरा लेकर कुछ यूँ मुस्कुराई वो, 
कोशिश तो जी-जान लगाकर की मैंने, 
पर होकर भी मेरी हो ना पाई वो।


खोया ही रहता हूँ यादों में तेरी, 
खुशबू बसी हैं मेरी साँसों में तेरी, 
पहले ना था मैं इतना दीवाना, 
कुछ तो जादू होगा बातों में तेरी।


तेरा मेरी राह तकना,
मेरे आते ही शर्मा कर छुप जाना;
बड़ा लुभाता है मुझे, 
तेरा यूं झूठा सा सच कह जाना।


मिल जाए जो फुर्सत तुम्हें, आ जाना हमारी गलियों में, 
क्या होता है इज़हार-ए-इश्क़, बता देंगे तुम्हें हम।


जानती हो सारे राज़ तुम,
तुमसे कुछ भी छुपाना फ़िज़ूल है।
मर्ज़ी चाहे जो हो तुम्हारी,
मुझे हर शर्त कबूल है।


हो सके तो मुझे भूल जाना तुम,
यूं छिपकर ना आंसू बहाना तुम
आख़िर मेरा भी हक बनता है
कभी कभी मुझको भी याद आना तुम।


प्यार तो था हमें तुमसे खुद से ज़्यादा,
बस तुम्हें कभी बताया ही नहीं।
ख़ता तो इतनी सी हो गई हमसे,
औरों की तरह हमने कभी जताया ही नहीं।


खुश्क गर्मी आती है बरसातों के पहले,
भला पंछी चहचहाना छोड़ देते हैं क्या?
नहीं मिलता जब भंवरों को आशियाना,
फूल ढूंढने से मुंह मोड़ लेते हैं क्या?
यकीन करो ख़ुद पर सबसे ज़्यादा,
याद आएंगे तुम्हें ये मुश्किलों भरे दिन।


संगम हो ना हो आशिक़ी में,
दिल में चाहत होनी ज़रूरी है,
जिसमें इश्क़ ज़ाहिर करना पड़े,
मोहब्बत तो वो अधूरी है।


न फुर्सत उसे बात करने की मुझसे,
न हिम्मत ये मुझमें कि ख़ुद कह सकूं मैं,
अब मुश्किल है कैसे बताऊं मैं उसको,
न उसके बिना एक पल रह सकूं मैं।


बाहें जो खोल दूं मैं कभी
मुझमें समां जाना तू,
दिल से जो पुकारूं तुझको 
पास मेरे आ जाना तू।


महसूस करोगे जो तन्हाई मेरी, तो तन्हा मैं और ना रहूँगा, 
छू लेना तुम परछाई मेरी, मैं फिर से जी उठूँगा।


यूं ही नहीं किसी पर आता है दिल,
बड़ी मुश्किलों से संभल पाता है दिल,
चाहे कितनी ही बार टूट कर बिखर जाए,
फ़िर मोहब्बत की राह पर निकल आता है दिल।


ना आरज़ू कोई और, 
ना तमन्ना किसी की, 
हाल-ए-दिल बयाँ करने के लिए तुम ही काफ़ी हो।


कोशिशें तो बहुत की थीं हमने पाने की तुमको,
मगर जब भी मिला दर्द-ए-दिल ही मिला।


ज़िंदगी तो इश्क़ से भी बड़ी बेवफ़ा है,
कब जाकर मौत से मिल जाए किसको पता है।


तेरा ही सुरूर हर पल छाया हुआ है,
इस क़दर तू दिल में समाया हुआ है।


मोहब्बत का पैमाना कौन ही समझ पाया है,
यहां खुद को दांव पार लगाने की जुर्रत आखिर किसमें हैं।


हर सितम ये दिल हँसकर सहेगा,
अगर तू मेरे साथ रहेगा।


सपनों में जो आती हो तुम, 
हकीकत में भी तुम आया करो, 
पायल तो छनकाती हो तुम, 
कभी प्यार भी तो छलकाया करो।


ज़िंदगी तो इश्क़ से भी बड़ी बेवफ़ा है,
कब जाकर मौत से मिल जाए किसको पता है।


आना जाना चलता रहेगा
उनकी राहों में हमारा
इंतज़ार रहेगा उस कातिल का
जिसने प्यार से था हमें पुकारा।


ये गर्मी के दिन और ये सर्दी की रातें
मौसम की बदली सताती बहुत है,
ना गर्मी ये भाए ना सर्दी लुभाए,
क्या करूं मैं तेरी याद आती बहुत है।


थामा जो हाथ तेरा मैंने, तो छोड़े भी ना छूटेगा
रिश्ता जुड़ जाएगा दामन से तेरे, फ़िर तोड़ने से भी ये दिल ना टूटेगा।
जी चाहता है जान ले लूँ मैं ख़ुद की, 
पर मुझमें भी तो जान उसकी बसी है,
नहीं कुछ भी चाहे ये दिल फ़िर मेरा जब,
जीने को काफ़ी एक उसकी हँसी है।

होती ही नहीं हद मोहब्बत की कोई, 
बरसात-ए-चाहत में निखर लूं ज़रा।
बिखर सा रहा हूं न जाने मैं कब से,
एक नाम से तेरे अब संवर लूं ज़रा।

पास रहना गँवारा नहीं तो ये दूरी ही सही,
जो ना हो पाए पूरी मोहब्बत
तो मोहब्बत ये अधूरी ही सही ।

साँस लेता हूँ जब, आती है तेरी याद, 
पास होकर तो नहीं कह पता हूँ, 
पर सोचता हूँ तेरे जाने के बाद, 
अगर तुम न होती तो क्या होता मेरे साथ।

तुम्हें देखता रहूं मैं बस यूं ही,
जाने क्यूं तुम्हारी बातें सच्ची लगती हैं।
एक बस खयाल तुम्हारा,
यादें बाकी सारी कच्ची लगती हैं।
तुम्हारी बातें अच्छी लगती हैं।

चाहत को काफ़ी तेरी याद मुझको,
फिर चाहे मिले ना तू मुझको ना ग़म है,
मोहब्बत में हाज़िर हो जान-ए-वफा जो,
आशिक़ी के लिए फिर तो आशिक़ भी कम है।

यही अंजाम होना था
हमारी वफ़ाओं का,
वरना हमें जुदा करने की ताक़त
किसमें थी इस जहां में।

जवाब भेज रहा हूं...
सरसर हवाओं से
देखना कहीं ओझल ना हो जाए
तुम्हारी निगाहों से।
पास होकर कुछ भी नहीं कहती
क्या डरती हो मेरी अदाओं से
अरे तुम मेरी जान हो, मेरा जहान हो
मैंने पाया है तुमको बड़ी दुआओं से।

तेरे दर्द को तुझसे ज़्यादा समझ लिया था मैंने।
तेरे लिए ही बदलकर रास्ता तेरा इंतज़ार किया था मैंने।

तेरे अल्फ़ाज़ मेरे मोहब्बत की ही निशानी है,
अपने खयाल बनाकर इन पन्नों पर मुझे ही तो लिखती हो तुम।

तुम आग सी हो
और हूं मैं हवा सा,
क्या कभी हो पाएगा मेल हम दोनों का ?

तुम चंदन हो और मैं पानी,
ना तुम महकना छोड़ती हो
और ना मैं बहकना।

शौक बहुत था दिल लगाने का हमें,
अब तो ना दिल रहा, और ना ही शौक।

मोहब्बत में जायज़ है सर को झुकाना,
तुम आंखें मिलाने को शरमाते क्यूं हो,
चलो ये तो कुछ भी नहीं है मगर फ़िर,
जुल्फे घनी तुम ये लहराते क्यूं हो।

प्यार नहीं मेरा जिस्मानी, 
इश्क़ का रंग चढ़ाया है मैंने
वो तो बिखर चुकी थी पूरी
उसे समेटकर दोबारा बनाया है मैंने।

कब का छोड़ दिया तुमने उसपे चलना,
जो मिलकर बनाया हुआ रास्ता था हमारा।

कोशिश रहती है मेरी कि दिल ना दुखे किसी का, 
आखिर वक़्त बदलते देर नहीं लगती।

हवाओं से दोस्ती कर ली मैंने,
जब इस दुनिया से रूबरू हुआ।

जो जानते हैं कलाकारी वो कलाकार कहलाते हैं,
मैं सीख गया दुनियादारी, तो मैं दुनियादार ही सही।

तेरा ही सुरूर हर पल छाया हुआ है,
इस क़दर तू दिल में समाया हुआ है।

ज़माने भर की फ़िक्र ना करके
सरेआम इकरार करते हैं,
जो प्रियतम को अपने
ख़ुद से ज़्यादा प्यार करते हैं।

होती ही नहीं हद मोहब्बत की कोई,
बरसात-ए-चाहत में निखर लूं ज़रा।
बिखर सा रहा हूं न जाने मैं कब से,
एक नाम से तेरे अब संवर लूं ज़रा।

नहीं भूला मैं वो हसीं यादें,
बचपन रखता हूं अपने दिल में,
अब क्या करूं मैं...
मन नहीं लगता मेरा इस महफ़िल में।

तुम्हारी तो हर अदा प्यारी लगती है....
मैं तो रूठता ही इसलिए हूं,
ताकि तुम मुझे मना सको।

इतना हसीन एहसास ना पाते,
जो हम यूं इतने पास ना आते।

बाहें जो खोल दूं मैं कभी
मुझमें समां जाना तू,
दिल से जो पुकारूं तुझको 
पास मेरे आ जाना तू।

तेरा मेरी राह तकना,
मेरे आते ही शर्मा कर छुप जाना;
बड़ा लुभाता है मुझे, 
तेरा यूं झूठा सा सच कह जाना।

बाकी सारे रंग तो छूट जाएंगे आसानी से,
एक इश्क़ का ही रंग है;
जो मिटाए नहीं मिटता।बसे हो जिसके हर कतरे में तुम,
उसे वफ़ा-ए-इश्क़ याद दिलाया नहीं जाता।
मोहब्बत हो जिससे बेइंतेहा,
उसे कभी भुलाया नहीं जाता।

प्यार तो था हमें तुमसे खुद से ज़्यादा,
बस तुम्हें कभी बताया ही नहीं।
ख़ता तो इतनी सी हो गई हमसे,
औरों की तरह हमने कभी जताया ही नहीं।

जी चाहता है जान ले लूँ मैं ख़ुद की,
पर मुझमें भी तो जान उसकी बसी है,
नहीं कुछ भी चाहे ये दिल फ़िर मेरा जब,
जीने को काफ़ी एक उसकी हँसी है।

तेरे हुस्न-ए-दीदार को हम हैं तरसे,
हूं मैं बस तेरा और तू मेरी मंज़िल,
चाहत में तेरी हूं मैं तो दीवाना,
ये जाने है तू और बस एक मेरा दिल।

हो सके तो मुझे भूल जाना तुम,
यूं छिपकर ना आंसू बहाना तुम
आख़िर मेरा भी हक बनता है
कभी कभी मुझको भी याद आना तुम।

मोहब्बत का पैमाना कौन ही समझ पाया है,
यहां खुद को दांव पार लगाने की जुर्रत किसमें हैं।

लोगों को खूबसूरत पल चाहिए,
मुझे उन हसीं पलों में तुम।

चाहत को काफ़ी तेरी याद मुझको,
फिर चाहे मिले ना तू मुझको ना ग़म है,
मोहब्बत में हाज़िर हो जान-ए-वफा जो,
आशिक़ी के लिए फिर तो आशिक़ भी कम है।

संगम हो ना हो आशिक़ी में,
दिल में चाहत होनी ज़रूरी है,
जिसमें इश्क़ ज़ाहिर करना पड़े,
मोहब्बत तो वो अधूरी है।

दिल तो तोड़ दिया तुमने,
चाहत अपनी कैसे तोड़ सकती हो।
मुझ से तो मुंह मोड़ भी लोगी,
ख़ुद से कैसे मुंह मोड़ सकती हो।

एक मैं ही तो तेरा अपना था,
मुझी को तूने ग़ैर समझा।
कैसे बर्दाश्त कर लूं मैं,
कि मेरी मोहब्बत को तूने बैर समझा।

मेरी मोहब्बत का बस इतना फसाना है,
मैं तो तेरा अपना हूँ पर तू मेरा बेगाना है।

मैंने तो बस एक नज़र देखा था तुमको,
तुम तो मेरे जीने की वजह बन गए।

तेरा इंतज़ार भी इन लहरों की तरह ही है,
ना ये लहरें ख़त्म होती हैं और ना ही तेरा इंतज़ार ।

ना समझ ऐ दिल अब गैर उसको,
संभाला भी उसने, बिखेरा उसीने।

वो तन्हाई वही जो कोई हमदम ना हो,
वो जुदाई नहीं गर आंखें नम ना हो,
वो ज़िंदगी ही क्या जिसमें गम ना हो,
वो आशिक़ी ही क्या जिसमें हम ना हों।

तू शरमाकर जो मुस्कुरा दे तो,
एक अफसाना बन जाएगा,
ये तारे तो क्या ये चांद भी,
तेरा दीवाना बन जाएगा✨
अफ़सोस नहीं तेरे जाने का मुझको,
गम है तो बस तेरे बहाने का मुझको।

लिखता नहीं मैं सोचकर कुछ भी
अल्फ़ाज़ मेरे हैं आवाज़ तेरी,
नहीं चाहता सिर्फ़ तुझे मैं
पसंद है मुझे हर साज़ तेरी...

कि जलने लगे खुद अब हमसे मोहब्बत
प्यार इस कदर निभाया है तुमने,
भूल गया था खुदको इस बेखुदी में
मुझको मुझीसे मिलाया है तुमने।

नाम अपना बनाने के लिए
ज़माने भर में हमें बदनाम करते हैं,
वफा की उम्मीद ना रखना तुम उनसे
वो तो बेवफ़ाई भी सरेआम करते हैं।

ये चांद भी शरमा गया जब, 
नाम तुम्हारा बताया उसे, 
गुरूर बहुत था उसको भी तबतक,
था तुमसे ना जबतक मिलाया उसे।

चाहत को काफ़ी तेरी याद मुझको, 
फिर चाहे मिले ना तू मुझको ना ग़म है, 
मोहब्बत में हाज़िर हो जान-ए-वफा जो, 
आशिक़ी के लिए फिर तो आशिक़ भी कम है।

तेरे हुस्न-ए-दीदार को हम हैं तरसे, 
कातिल सा मुखड़ा दिखाया करो, 
ज़ालिम ये दूरी सताती बहुत है, 
कभी तो मेरे पास आया करो।

धूप सुनहरी जो चमकी धरा पर, 
पेड़ पौधे सभी खिलखिलाने लगे, 
चेहरा हंसी से झूम उठा सबका, 
ये पंछी जो सरगम सुनाने लगे।

अहमियत नहीं उसकी आंखों में मेरी,
बस एक उसे दौलत का नशा था,
जब चाहे ठुकराया, चाहे तो अपनाया,
मोल नहीं कोई मेरी वफा का।

हसीं ख़्वाब जैसा खुशनुमा एहसास हूं मैं,
कहां ढूंढती हो मुझे हर पल तुम्हारे पास हूं मैं...

इश्क़ अपना कुछ यूं फना हो जाए, 
रहें तो सिर्फ़ तू और मैं, बाकी सब धुआं हो जाए।

वफ़ा-ए-मोहब्बत तो हमने भी की है, 
कुछ फ़साना तुम्हारा तो कुछ है हमारा। 
ना समझ ए दिल अब गैर उसको, उसी ने बिखेरा उसी ने संवारा।

बड़ा गुस्सा आता है इस चांद पर भी मुझे, 
जब भी खोता हूं उसकी आखों में, ढल जाता है।

गुज़ारिश है तुमसे मेरी जाते जाते मेरा ये पैग़ाम रखना, 
भूल जाना मुझको, चाहे तो दिल से मिटा देना,
मोहब्बत ना सही, नफ़रत मेरे नाम रखना।

हक़ीक़त में जब दीदार होगा उनसे,
जाने क्या खयाल होगा हमारा, 
यकीन नहीं होगा किस्मत पर अपनी,
शायद कुछ ऐसा हाल होगा हमारा।

ख़ुशी ना सही तो गम ही मुबारक हमको, 
जितनी मिली, काफी है जीने को।

अपनी भी ईमानदारी के किस्से मशहूर हैं कईं, 
एक बार किसी से दिल लगा लिया, तो दिल से कभी उतरते नहीं।

ज़रा उनपर भी तो हो मोहब्बत की इनायत, 
जो मोहब्बत को बदनाम सरेआम करते हैं, 
बातें करते हैं दिल से दिल लगाने की, 
और दिल्लगी सुबह शाम करते हैं।

नकार नहीं करता अब तो तन्हाई को भी मैं, 
जब कोई साथ ना हो किसी का, तब साथ यही निभाती है।

मिल ना सके वे फिर कभी,
उस शाम की मुलाकात के बाद, 
रख लिए छुपाकर मन में अपने,
दोनों ने अपने दिल के जज़्बात।

दिन रात उसी की बातें करूं मैं, 
कशिश सी उसी की छायी हुई है, 
भले ही मिटा दूं मैं यादों से उसको, 
पर सांसों में भी वो समायी हुई है।

सच्ची मोहब्बत हो जिनके दरमियान, 
दूर होकर भी वे पास होते हैं,
ज़िन्दगी से बढ़कर होती है चाहत, 
कुछ रिश्ते इतने खास होते हैं।

नफ़रत हो जिससे ख़ुद से भी ज़्यादा 
बिनचाहे उससे मिलाती है ज़िंदगी, 
इश्क़ में जो पड़ जाए गलती से कोई 
हद से भी ज़्यादा आजमाती है ज़िंदगी।

जाने क्या राबता है उससे मेरा,
बिन सोचे ही उससे मिल जाता हूं मैं, 
गम चाहे कोई हो मुझको कभी भी,
याद आते ही उसकी खिल जाता हूं मैं।

अच्छे वक़्त पर गुरूर ना करना ए दोस्त मेरे, 
कभी किसी का होकर ना रहा, तो फिर तुम्हारा क्या होगा।

शाम होते ही उसे याद आती थी मेरी, 
दिन भर मन बहलाने वाले बहुत थे उसके।

अगर ना मिलती हमसे तुम, 
तो कैसे रूत ये होती जवां, 
किसी मकसद से ही मिले होंगे हम, 
ज़िंदगी में कुछ भी नहीं होता बेवजह।

Mr. Shayar

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Mr Shayar Online's Half-Love Story

My Half Love-Story

In 2005, a shy 5th-grader noticed a girl dancing, sparking a crush that lasted over a decade. Despite assumptions about her relationship with a friend, he never spoke to her until post-graduation. Mustering courage, he confessed via a voice message. She respectfully acknowledged his feelings, complimenting his voice, and he reflected on the value of his shyness.
बचपन के वे दिन! - Mr Shayar Online

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