होली

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Holi

फागुन का ये महीना पावन, लगे शीतल चंदन रोली
पूर्णिमा के अगले दिन ही, आनंदपूर्ण आती होली।

प्रीति भाव से हैं प्रसन्न सब, सृष्टि ये सारी भोली
विष्णु भक्त प्रहलाद विजय से, हुई प्रारंभ प्रथम होली।

रंगत खिल जाए चेहरे पर, छलके मुख से हंसी-ठिठोली
तेज बने चमक माथे की, अद्भुत है ऐसी होली।

प्रदीपमय हो जाए बुद्धि, तन बन जाए रंगोली
सर्वधर्मसमभाव सहित हम, मना सकेंगे हर होली।

सब बन जाएं मित्र सभी के, आ जाए सबकी टोली
वर्णभेद से परे सभी हों, आशावादी हो होली।

नायक-नायिका गुलाल उड़ाएं, खेलें संग में आंख-मिचौली
जो देखे हो जाए सम्मिलित, प्रभावशाली ये होली।

गले मिल बांटें खुशियां सबसे, लेकर फूलों की डोली
रह जाए ना वंचित कोई, आओ खेलें ऐसी होली।

नटखट कान्हा सुनाए गोपियों को, सुमधुर मुरली की बोली
मंद मंद मुस्कान सजाए, करे सुगम अप्रतिम होली।

हर्षोल्लास का है पर्व ये, महिमा इसकी अमोली
दृढ़ करके इच्छाशक्ति को, बनाएं खुशियों को होली।

दिल की बातें हैं सारी ये, शब्दों से ना जाएं तोली
मानव समझे मानव का दुख, दुर्लभ होगी वो होली।

सत्य के रंग से खेलें होली, मिलकर हम तुम सब हमजोली,
ये रंग ना माने भेद किसी में, है जैसे हरदिन होली।

और किसी की नहीं अपेक्षा रहेगी फ़िर अपने जीवन को
राधे राधे कहते कहते रंग डालो तुम अंतर्मन को।