वो संवरती रही, मैं बिखरता रहा।

वो संवरती रही, मैं बिखरता रहा। Poetry Hindi Poem Hindi Kavita
वो संवरती रही, मैं बिखरता रहा।

इस क़दर प्यार उससे मैं करता रहा,
वो संवरती रही मैं बिखरता रहा।
मन ही मन अनगिनत सपने बुनता रहा,
वो संवरती रही, मैं बिखरता रहा।

उसकी ही बातें थीं बातों में मेरी
बिन उसके ना एक पल मैं जिया
छूटे ना हाथों से दामन ये उसका
आंखों से उसको ना ओझल किया
मोहब्बत में उसकी संभलता रहा
वो संवरती रही, मैं…

ख्वाहिश ना कोई थी उससे परे
एक उसकी तमन्ना लिए मैं चला
भले चाहे ठुकरा या अपना बना
शायद मोहब्बत की ये है सज़ा
फ़िर भी उसके लिए दिल मचलता रहा
वो संवरती रही, मैं…

पल जो बिताए थे साये में उसके
अब भी है वाक़िफ़ मेरा आज उनसे
नहीं लगता मन ये अब साथ तेरे
सपनों में कहती रही वो ये मुझसे
सिलसिला उसकी यादों का चलता रहा
वो संवरती रही, मैं…

लफ़्ज़ों से परे थी मोहब्बत हमारी,
सिलसिला तो नज़रों से शुरू था हुआ
जाने कहां से आग आयी दगा की
अब बस बचा है धुआं ही धुआं
जानकर वो इरादे, उसको मैं ना चुनता
काश! वो ना मिलती और मैं ना बिखरता।