उठो चलो आगे बढ़ो।

उठो चलो आगे बढ़ो। Poetry Hindi Poem Hindi Kavita
उठो चलो आगे बढ़ो।

उठो चलो बढ़ो ज़रा, कभी कहीं ना रुकना तुम
कठिन हो कितनी राह भी, किसी तरह ना झुकना तुम

जो चल पड़ोगे तुम यूँ तो, चलेगी साथ ये धरा
सतत प्रयास करना बस, कभी ना रुकना तुम ज़रा

बढ़ तू खुद भी, और दूसरों को भी तू दे चला
की बैठे रहने से भी क्या, हुआ किसी का है भला

सपने देखे हैं जो तूने, करने हैं तुझको पूरे
भटक कभी ना राह से, दिन आएं अच्छे या बुरे

दिखे जो अंधकार, दिए आशा के जला लेना
मार्ग से विचलित करें, ऐसे विचार मिटा देना

क्या किया? करेगा क्या? ये खुद तुझे भी भान है
कर्म दिल से जो करे, वही सच्चा इंसान है

जग उसी को मानता, जो कर्म निष्ठां से करे,
अगर तू सच्चा है तो फिर, भला किसी से क्यों डरे

चाहे करना कुछ भी तू, ना किसी से दाह कर
भला ही सबका करना तू, बुरा ना करना चाहकर

कर्म ऐसा करना कि, हो सबके दिल में तेरा नाम
बड़ों का आशिर्वाद मिले, छोटे करें तुझको प्रणाम

साँच को है आंच क्या, सच को ना संताप है
कर सकता है कुछ भी तू, ऐसा तुझमे प्रताप है

आज, कल, या परसों की, बिना परवाह किये जो चले
चाहे देर सवेर सही, मंज़िल उसे ज़रूर मिले।
चाहे देर सवेर सही, मंज़िल उसे ज़रूर मिले!