अब चल पड़ा हूं।

अब चल पड़ा हूं। Poetry Hindi Poem Hindi Kavita
अब चल पड़ा हूं।

अब चल पड़ा हूं मैं यूं ही सफ़र में
ना मंज़िल पता है ना घर का ठिकाना
गर मिल जाए कोई जो मुझको डगर में
सुना दूंगा उसको मैं अपना फसाना
अब चल पड़ा हूं मैं यूं ही सफ़र में।

शिकवा ना कोई ना कोई गिला है
अब तक यहां मुझको जो भी मिला है
मुश्किल है राहें पर हिम्मत बहुत है
इन संघर्षों में एक सुकूं भी मिला है
नई हैं अब राहें, नया है तराना
अब चल पड़ा हूं मैं…

हर मोड़ पर रुख़ हवा भी बदलेगी
टिकेगा वही जिसकी इच्छा डटेगी
कितना भी खजाना मिल जाए मुझको
कामयाबी की प्यास मंज़िल से मिटेगी
पड़ेगा अब और खुद को तपाना
अब चल पड़ा हूं मैं…

कुछ आगे चल मुश्किलें भी मिलेंगी
उनको भी ले साथ आगे बढूंगा
गर ना हटी फ़िर भी राहों से मेरी
लड़ लूंगा मैं चाहे कुछ हो चुनौती
हंसते हुए अब है गम को मिटाना
अब चल पड़ा हूं मैं…

अगर हो ज़रूरत तो हाथ मैं बढ़ाऊं
जब कोई गिरे तो मै उसको संभालूं
चलना ना आए साथ अपने चलाऊं
भटके हुए को मैं राहें बता दूं
जो मैंने सीखा है सबको सिखाना
अब चल पड़ा हूं मैं यूं ही सफ़र में।