मिला है जीवन बड़े भाग्य से, इसको ना दुश्वार करो
कोरोना से बचना है तो इसका तुम प्रतिकार करो।
महामंत्र है बचने का ये, हंसकर तुम स्वीकार करो
कोरोना से बचना है तो इसका तुम प्रतिकार करो।
सावधानी जो अब ना बरती, ये बीमारी लग जाएगी
जीवन में जो है संपत्ति, यहीं धरी रह जाएगी
बड़ी ये विपदा आन पड़ी है, बाजी पे अब जान लगी है
महामारी जो फैली है ये, इसका तुम संहार करो
कोरोना से बचना है तो इसका तुम प्रतिकार करो।
रखो सफ़ाई ख़ुद पहले, फ़िर दूसरों को भी सिखाओ तुम
ना माने जो कोई तो, दुष्परिणाम बताओ तुम
कश्ती को ना है किनारा, आफ़त में इंसान बेचारा
ज्ञान सभी को दो स्वच्छता का, ख़ुद भी ना इनकार करो
कोरोना से बचना है तो इसका तुम प्रतिकार करो।
इस विनाशकारी दानव से, है विश्व ये जूझ रहा
किए हैं सब संभव प्रयास पर, किसी को कुछ ना सूझ रहा
छोड़ो अब मतभेद सारे, वक़्त आज का यही पुकारे
ख़ुद के और जगत के लिए, काम ये तुम हरबार करो
कोरोना से बचना है तो इसका तुम प्रतिकार करो।
घर से निकलो जब आवश्यक, बेवजह फेरे ना लगाओ तुम
दूसरों की परवाह नहीं तो, ख़ुद की जान बचाई तुम
ज़िम्मेदारी अब तो जानो, बातें काम को अब तो मानो
हर किसी का फ़र्ज़ यही है, ना इससे इनकार करो
कोरोना से बचना है तो इसका तुम प्रतिकार करो।
रखो सफाई घर में अपने, सैनिटाइजर रखो निकट में
भूल हुई जो थोड़ी सी भी, प्राण पड़ेंगे संकट में
समय विकट है, काल निकट है
धरती पर भूचाल निकट है
ये जो बातें सीखीं तुमने, इसका विश्व-प्रचार करो
कोरोना से बचना है तो इसका तुम प्रतिकार करो।
Disclaimer: The poem above is completely written out of my personal views and are no authorised medical suggestions or instructions to anyone. I had created this masterpiece in May 2020(when the Covid-19 lockdown had just started in India).
अस्वीकरण: उपरोक्त कविता पूरी तरह से मेरे व्यक्तिगत विचारों से लिखी गई है और यह किसी के लिए कोई अधिकृत चिकित्सा सुझाव या निर्देश नहीं है। मैंने यह उत्कृष्ट कृति मई 2020 में बनाई थी (जब भारत में कोविड-19 लॉकडाउन शुरू ही हुआ था)।
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