किसी रोज़ दस्तक जो दिल पर हुई तो,
याद आयी अचानक वो महफ़िल दोबारा,
वो रस्ते, वो गलियां, थे जिनसे हम गुज़रे
साथ था एक चेहरा जो दिल में उतारा।हवाएं भी सहला गईं यूं बग़ल से,
जाने किस अनकही का किया है इशारा,
एक अरसा लगा था उसे भूलने को,
ख्वाबों से भी कर लिया था किनारा।ना माना था मैंने कि है ये मोहब्बत
पता भी नहीं कैसा होता नज़ारा
वफ़ा की ना कोई ज़रुरत थी मुझको
चाहत को काफ़ी ना कोई गंवाराआए कई मौके मिलने को उससे
पर अजनबी सा है अब ये रिश्ता हमारा
वादे आते हैं करने ज़माने में सबको
मांगे ना मिलता किसी को सहाराना समझ ए दिल, उसे गैर अब तो
उसीने संभाला, उसीने बिखेरा
पर एक बात है मुश्किल भुलाना
ना मिला फिर मुझे, उस सा कोई भी प्यारा।इश्क़ में शामिल हो कितनी ही दूरी
आपसी तालमेल का भी है, ये खेल सारा
कद्र सबकी करो किसी शर्त बिना तुम
भले चाहे कोई, हो सके ना तुम्हारा।
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किसी रोज़।

किसी रोज़।
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