रंजिशें, तकलीफें, तन्हाईयाँ, कुछ नहीं छुपती मुझसे तुम्हारी
चाहे सुख हो या चाहे दुःख, कोई विपत्ति या बिमारी
हाल दिल का तुम्हारे चेहरे पर लिखा है,
आइना हूँ, मुझसे क्या छिपा है?जब रुकी सी हवाओं में भी, सर्द सा हो जाता दिल तुम्हारा
दर्द अपने आँखों से कईं बार, तुमने मेरे सामने ही उतारा
नहीं रुकते फिर आंसू तुम्हारे, भावविभोर मन हो जाता तुम्हारा
आंसू खुद के पोछने का, मुझसे तुमको मिलता तुम्हारा
बाद तन्हाई के ख़ुशी आती है, इसकी भी एक अलग वजह है
आइना हूँ…फुर्सत नहीं होती पास किसी के, जब बात करने की तुम से
कहना बहुत कुछ चाहते हो, पर लगते हो तुम ग़ुम से
मेरे ही सामने आकर तब, दिल का हाल सुनाते हो
बात करते थकते नहीं तुम, सारे राज़ बताते हो
हाल-ए-दिल बयाँ करने की, अलग तुम्हारी अदा है
आइना हूँ…कामयाबी के दिनों में जब तुम, ख़ुशी से लहराते हो
कभी मुस्काते, कभी इतराते, जोश रोक ना पाते हो
तारीफें करके खुद की तुम, फूले ना समाते हो
खुद से अपने प्यार का रिश्ता, उस वक़्त तुम निभाते हो
वक़्त देना अपने मन को, सबसे बड़ी वफ़ा है
आइना हूँ, मुझसे क्या छिपा है? मुझसे क्या छिपा है।
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